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शायरी 1

वो इत्तेफाक से रास्ते में मिल जाये कन्ही बस इसी शौक ने हमे आवारा बना दिया  बिगड़ गये थे हम इश्क में थोड़े बहुत  दिल टूटा तो फिर दिल तोड़े बहुत  गुफ्तगू हमसे और खयालो में कोई और  हाल आपका भी  हमारी नमाजो जैसा है  बात वफाओ की होती तो हम कभी ना हारते  बात नसीब की थी , कुछ कर ना सके  मोहब्बत सिखा कर जुदा हो गया  ना सोचा ना समझा जुदा हो गया  दुनिया में हम किसे अपना कहे जो अपना था वही बेवफा हूँ गया  कुछ होश नहीं रहता कुछ ध्यान नहीं रहता इन्सान मोहब्बत में इंसान नहीं रहता  दिल भी तूने बनाया और नसीब भी ये खुदा  फिर वो क्यूँ दिल में है जो नसीब में नहीं  इस दौर के इंसान में वफ़ा ढूंढ रहे हो  बड़े नादान हो ज़हर के शीशे में दवा ढूंढ रहे हो  खुदा की कसम बहुत कम देखते है  तुम्हें जिन निगाहों से हम देखते है  ना मिल रहा है ना खो रहा है तू  कितना दिल चस्प हो रहा है तू  किसी को जिस्म मिला किसी को रुसवाई मिली  हम मोहब्बत में सबसे पक्के थे तो हमे तन्हाई मिली  तू नहीं दिल में मगर तेरा निशा बाकी है  बुझ गयी आग मोहब्बत की धुआ बाकी है  मैं तेरे बेवफा होने से परेशां नहीं  दिल लगाने को अभी सारा जन्हा बाकी है